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सबसे बड़ा सवाल : दुर्जनपुर का दुर्जन कौन ?

सबसे बड़ा सवाल : दुर्जनपुर का दुर्जन कौन ?




मधुसूदन सिंह

बलिया।। जनपद के बैरिया तहसील के दुर्जनपुर में 15 अक्टूबर 2020 को  कोटे की दुकान के आवंटन के लिये बुलायी गयी बैठक के स्थगित करके अधिकारियों के वहां से निकल जाने के बाद (जबकि मीडिया में खबर चली कि एसडीएम सीओ के सामने ) जो बलवा हुआ और उसमें एक निरीह गामा पाल नामक अधेड़ की मौत हो गयी , वह अनायास घटित घटना तो नही है । जिन दुकानों का आवंटन होना था उनमें एक दुकान पूर्व के रामकुमार राम और दूसरी दुकान अजय यादव नामक दुकानदारों की निलंबित दुकानें थी । दुर्जनपुर के ग्राम प्रधान कृष्णा यादव की माने तो ये दुकानें लगभग तीन सालों से निलंबित है और इनकी जगह पर नई दुकान के लिये आवंटन के लिये कई बार मीटिंग करके कोशिश की गई पर दबंगो और सत्ता पक्ष के दबाव में आवंटित नही हो पायी । 15 अक्टूबर को भी जब बवाल ज्यादे बढ़ा तो एसडीएम बैरिया ने मीटिंग स्थगित कर दी । कहा कि जबकि मैने मीटिंग से पहले ही लिखित रूप से मीटिंग के समय बवाल होने के अंदेशा जताते हुए पीएसी लगाने की मांग की थी । धीरेंद्र प्रताप सिंह अपनी दबंगई के बल पर दुकान का आवंटन कराना चाहते थे । जबकि गांव की गरीब जनता ऐसे दुकानदार के चयन के पक्ष में थी जिसके यहां दबंगई न होती हो । लेकिन कृष्णा यादव से यह पूंछा गया कि जो दो दुकानें निरस्त हुई है ,वो लोग भी तो दलित व पिछड़ा होने के बाद दबंगई ही कर रहे थे ,निरुत्तर हो गये और इसको जातीय समीकरण से मिलाने का प्रयास करने लगे ।

कैसे हुई घटना ,कौन है दुर्जनपुर का असली दुर्जन : कौन है पीली शर्ट वाला नेता, कौन है सफेद कुर्ता पायजामा गमछा बांधे दो नेता






ऊपर के फोटो में देखिये केशरिया टी शर्ट पहने धीरेंद्र मार रहा  की उसके ऊपर हमला हो रहा है
इसमे भी देखिये
इसमे भी देखिये कौन चारो तरफ से घिरा है



उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोटे की दुकानों के आवंटन को समूहों को आवंटित करने की योजना खून खराबे की कारण बनती जा रही है । साथ ही इस तरीके से आवंटन के चलते आरक्षण के प्राविधानों को भी शिथिल किया जा रहा है । दुर्जनपुर में हुई घटना दो समूहों के बीच बर्चस्व के कारण घटी जरूर है लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में गहरी साजिश थी,इससे इनकार नही किया जा सकता है । मीटिंग को स्थगित करके गांव से बाहर अधिकारियों के निकलने के बाद जिस तरह से ग्रामीणों के मध्य बवाल हुआ, उसमें एक लड़का यह कहते हुए साफ सुना जा सकता है कि प्रधान जी के साथ मार हो गयी है,और गाली देते हुए भागता है,अन्य लोग भी लाठी डंडे लेकर दौड़ते है,उसके वायरल वीडियोज को देखने के बाद साफ लग रहा है कि पीली शर्ट पहने एक व्यक्ति लोगो को लाठी डंडों के साथ दूसरे पक्ष पर हमला करने के लिये उकसा रहा है । इस पूरी वीडियो में वह पीली शर्ट वाला हर उस जगह दिख रहा है जहां लाठी डंडे लिये लोग है या झगड़ा करने के लिये उद्दत युवा । यह पीली शर्ट वाले अधेड़  लगातार फसाद को बढ़ाने के यत्न में युवाओं को धकेल धकेल कर उकसा रहा है । पुलिस के जवान या अधिकारी इस बीच कही नही दिखते है क्योंकि वो लोग तो मीटिंग स्थगित करके सड़क तक चले गये थे,फिर अधिकारियों की मौजूदगी में जिस तरह से गोलीकांड होने की झूठी खबर ग्राम प्रधान व अन्य लोगो द्वारा मीडिया तक पहुंचाई गई वह निश्चित ही साजिश का हिस्सा है । वही इस घटना के मुख्य आरोपी धीरेंद्र प्रताप सिंह भी एक वीडियो में दिख रहे है जिसको घेर कर दो सफेद कुर्ता पायजामा पहने और पगड़ी बांधे लोग हाथों में असलहा जैसे चीज को धीरेंद्र सिंह पर ताने हुए दिखते है, आखिर ये दो सफेद कुर्ता पायजामा धारी लोग कौन थे ? प्रशासन आजतक खोज भी नही पाया है क्यो ? फरार होने से पहले धीरेंद्र प्रताप सिंह पुलिस की गिरफ्त में दिखते है लेकिन हाथों में असलहा नही दिखता आखिर क्यों ? सैकड़ो लोगो के बीच मे हत्या करने वाला हत्यारा क्या असलहा फेक कर अपनी मौत को आमंत्रित करता है ? धीरेंद्र सिंह के घर की महिलाओ पर ,बुजुर्गों और युवकों पर हमला करके गंभीर रूप से घायल करने वाले हिंसक भीड़ को उत्तेजित करके आरोपी के घर को तहस नहस करने के लिये उकसाने वाले ,लूट करने वाले कौन है ,इसका पता अबतक क्यो नही चला ,प्रशासन के पास जबाब है क्या ?

हाथरस बनाने की साजिश,प्रशासन की भूमिका संदिग्ध







दुर्जनपुर में जो भी घटना क्रम हुआ निश्चित रूप से दुखद और एक गरीब परिवार पर तो दुखो का पहाड़ टूटने जैसा है । इस घटना क्रम में एक ऐसे निरीह की जान चली गयी जिसको इस फसाद और कोटे की दुकान से कोई मतलब नही था, वह तो मीटिंग में भीड़ का हिस्सा मात्र था । लेकिन इस हत्याकांड के बाद जिस तरह से प्रशासनिक अमले ने चूक पर चूक की,वह राजनैतिक दलों और मीडिया को इस कांड को हाथरस से तुलना करने के लिये संजीवनी जैसी टॉनिक देने का काम की । एक छोटी सी मारपीट में भी दोनो पक्षो की तरफ से मुकदमा लिखने वाली बलिया पुलिस इस इतने बड़े बवाल के बाद भी न जाने किस दबाव व आईपीसी व सीआरपीसी के कानूनों के तहत बलवा फैलाने का मुकदमा दर्ज नही की ,मात्र गामा पाल की हत्या और हत्यारो को पकड़ने में ही अपनी बहादुरी समझी । आजमगढ़ के डीआईजी सुबाष दुबे जी का बयान तो और भी चौकाने वाला था कि धीरेंद्र सिंह के घायल व बीएचयू में आईसीयू में भर्ती परिजन हमला होने का साक्ष्य लाये तब एफआईआर दर्ज होगा,पुलिस की कार्यशैली पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ी कर रही है । क्या डीआईजी महोदय व स्थानीय प्रशासन गंभीर हालत में भर्ती होने को साक्ष्य नही मानते है । खुदा न खास्ता अगर इन घायलों में से कोई मर गया तो मौत का जिम्मेदार बलिया पुलिस या डीआईजी साहब किसको मानेंगे ? क्या इसके लिये भी धीरेंद्र और उसके साथियों पर ही मुकदमा पंजीकृत कर देंगे ? आरोपी का घर किसने लूटा सामानों को किसने लूटा ,बलिया पुलिस बताएगी ? या यह भी संविधान की किताबो में लिखा है कि हत्यारे के परिजनों को जीने का कोई अधिकार नही? उनके घर को कोई भी लूट सकता है,सामानों को तहस नहस कर सकता है, यह लोगो को कानूनी अधिकार है ?

बलिया नाम से लग रहा है डर

दुर्जनपुर कांड के बाद राजनीति जोरो पर है । पिछले 24 अगस्त को हुई पत्रकार रतन सिंह की हत्या और अब दुर्जनपुर कांड को देखने के बाद सीएम योगी का कहना कि बलिया नाम से ही डर लग रहा है,चर्चा और राजनीति का विषय बन गया है और राजनीति शुरू हो गयी है । दुर्जनपुर कांड हो या पत्रकार रतन सिंह हत्याकांड हो,यह दोनो यहां की लचर पुलिसिंग की जीती जागती मिसाल है । थानो पर एक जाति विशेष का सर्वाधिक वर्चस्व और बहुत दिनों से एक ही जगह का कार्यभार देखना सबसे बड़ा बलिया में अपराधों के बढ़ने का कारण है ।

सीएम साहब बलिया से डरने की जरूरत नही इसको समझने की जरूरत है । यहां के नौकरशाही के रगरग में दौड़ रहे भ्रष्टाचार को पहचानिये ,बड़ी जांच की चाबुक चलाइये यहां की जनता सड़को पर नही दिखेगी । बलिया की जनता चाहे अंग्रेजो का शासन रहा हो या स्वदेशी हर जुल्म व अन्याय का प्रतिकार करने से पीछे नही हटती है । आपके नौकरशाहों की दुर्जनपुर में एक पक्षीय कार्यवाही ही यहां लोगो को सड़कों पर ला रही है, आपके बैरिया विधायक को सबके सामने रोने को विवश कर रही है,और विपक्षी दलों के  प्रतिनिधि मंडलों की एक पक्षीय जांच से बलवा कराने वालों को खुशियां मनाने का मौका दे रही है । यह पूर्व पीएम चन्द्रशेखर की धरती है जहां सहयोगी को मरते दम तक सहयोगी कहने का जिगर बलियाटिको के पास होता है । चाहे पीएम रहते माफिया किंग सूर्यदेव सिंह की अर्थी को कंधा देने वाले चन्द्रशेखर जी हो या तथाकथित हत्यारोपित धीरेंद्र प्रताप सिंह के परिजनों को न्याय दिलाने के लिये अपनी विधायकी को दांव पर लगाने वाले बैरिया विधायक सुरेंद्र सिंह हो ।

करणी सेना( भारत) प्रमुख व पूर्व सैनिक कल्याण संगठन प्रदेश प्रभारी दोनो से संभाला मोर्चा 



पूरे देश मे अन्याय का प्रतिकार करने के लिये सुविख्यात हो चुकी करणी सेना(भारत) के राष्ट्रीय प्रभारी वीर प्रताप सिंह वीरू ने रविवार को अपने हजारों समर्थकों के साथ बलिया में डेरा डालकर प्रशासन के माथे पर बल ला दिया है । श्री वीर ने साफ लफ्जो में कह दिया है कि दुर्जनपुर के तथाकथित हत्यारोपी धीरेंद्र प्रताप सिंह के परिजनों पर जान लेवा हमला करने वालो पर जबतक एफआईआर दर्ज नही होती है ,मै बलिया से नही जाऊंगा ।श्री वीर ने तो डीआईजी आजमगढ़ और स्थानीय प्रशासन पर तंज कसते हुए कहा कि भारत के किस कानून के किताब में लिखा है कि घायल सबूत देगा तब एफआईआर दर्ज होगी । साथ ही धीरेंद्र के परिवार की महिलाओ के साथ पुलिस द्वारा अभद्रता करने की सूचना पर चेताया कि ऐसा हरगिज नही होना चाहिये ,क्योकि मां बहनों की इज्जत की रक्षा के लिये करणी सेना किसी भी स्तर तक किसी से भी भीड़ सकती है । साथ ही राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि मंडलों को भी कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आप जांच करने आये हो तो सच का पता लगाओ ,दोनो परिवारों तक जाओ, तब तो पता चल पायेगा कि सच क्या है ? कहा कि हम बलिया आ गये है अब सिर्फ न्याय ही होगा ।








वही पूर्व सैनिक कल्याण संगठन के प्रदेश प्रभारी रमेश सिंह गुड्डू भैया के नेतृत्व व जिलाध्यक्ष अखिलेश्वर सिंह के निर्देशन में बलिया जनपद के सैकड़ो पूर्व सैनिकों ने एक मीटिंग करके सीएम योगी से इस कांड की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए तथाकथित हत्यारोपित धीरेंद्र सिंह के घर की महिलाओ और पुरुषों पर जानलेवा हमला करने वालो, घर मे लूटपाट करने वालो के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की पुरजोर मांग की है । इसके बाद ये लोग दुर्जनपुर जाकर धीरेंद्र सिंह के परिजनों से मिलकर आपबीती सुनी । आपबीती सुनने के बाद पूर्व सैनिकों में काफी आक्रोश देखा गया ।